पशुओं में थनैला रोग का उपचार | बकरी में थनैला रोग का उपचार | थनैला रोग की देसी दवा

 थनेला रोग या स्तनशोथ (Mastitis) दुधारू पशुओं को लगने वाला एक रोग है। थनैला रोग से प्रभावित पशुओं को रोग के प्रारंभ में थन गर्म हो जाता हैं तथा उसमें दर्द एवं सूजन हो जाती है। शारीरिक तापमान भी बढ़ जाता हैं। लक्षण प्रकट होते ही दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है। दूध में छटका, खून एवं पीभ (पस) की अधिकता हो जाती हैं। पशु खाना-पीना छोड़ देता है एवं अरूचि से ग्रसित हो जाता हैं।m

यह बीमारी समान्यतः गायभैंसबकरी एवं सूअर समेत लगभग सभी वैसे पशुओं में पायी जाती है, जो अपने बच्चों को दूध पिलातीं हैं। थनैला बीमारी पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूँद एवं यीस्ट तथा मोल्ड के संक्रमण से होता हैं। इसके अलावा चोट तथा मौसमी प्रतिकूलताओं के कारण भी थनैला हो जाता हैं।

प्राचीन काल से यह बीमारी दूध देने वाले पशुओं एवं उनके पशुपालको के लिए चिंता का विषय बना हुआ हैं। पशु धन विकास के साथ श्वेत क्रांति की पूर्ण सफलता में अकेले यह बीमारी सबसे बड़ी बाधक हैं। इस बीमारी से पूरे भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का नुकसान होता हैं, जो अतंतः पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता हैं।

लक्षण

थनैला रोग से ग्रसित पशु का दूध (बाएँ) तथा सामान्य (रोगरहित) पशु का दूध (दाएँ)

अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के रोग में थन व दूध बिल्कुल सामान्य प्रतीत होते हैं लेकिन प्रयोगशाला में दूध की जाँच द्वारा रोग का निदान किया जा सकता है। लाक्षणिक रोग में जहाँ कुछ पशुओं में केवल दूध में मवाद/छिछड़े या खून आदि आता है तथा थन लगभग सामान्य प्रतीत होता है वहीं कुछ पशुओं में थन में सूजन या कडापन/गर्मी के साथ-साथ दूध असामान्य पाया जाता है। कुछ असामान्य प्रकार के रोग में थन सड़ कर गिर जाता है। ज़्यादातर पशुओं में बुखार आदि नहीं होता। रोग का उपचार समय पर न कराने से थन की सामान्य सूजन बढ़ कर अपरिवर्तनीय हो जाती है और थन लकडी की तरह कडा हो जाता है। इस अवस्था के बाद थन से दूध आना स्थाई रूप से बंद हो जाता है। सामान्यतः प्रारम्भ में मेंएक या दो थन प्रभावित होते हैं जो कि बाद में अन्य थनों में भी रोग फैल सकता है। कुछ पशुओं में दूध का स्वाद बदल कर नमकीन हो जाता है।

इस अदृश्य प्रकार की बीमारी को समय रहते पहचानने के लिए निम्न प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं।

  • 1. पी.एच. पेपर द्वारा दूध का समय-समय पर जांच या संदेह की स्थिति में विस्तृत जांच।
  • 2. कैलिफोर्निया मॉस्टाईटिस सोल्यूशन के माध्यम से जांच।
  • 3. संदेह की स्थिति में दूध कल्चर एवं सेन्सीटिभीटी जांच।

इसके अलावे पशुओं का उचित रख रखाव, थन की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधियों का प्रयोग एवं रोग का ससमय उचित ईलाज करना श्रेयस्कर हैं।

उपचार
  1. दूधारू पशुओं के रहने के स्थान की नियमित सफाई जरूरी हैं। ...
  2. दूध दुहने के पश्चात् थन की यथोचित सफाई लिए लाल पोटाश या सेवलोन का प्रयोग किया जा सकता है।
  3. दूधारू पशुओं में दूध बन्द होने की स्थिति में ड्राई थेरेपी द्वारा उचित ईलाज करायी जानी चाहिए।
  4. थनैला होने पर तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह से उचित ईलाज करायी जाय।
  5. सत्यव्रत सिंह ने बताया कि थनैला रोग के दुधारू पशुओं को प्रतिदिन 150-250 ग्राम आवला 15 दिन तक देना होगा। आवले के प्रयोग से पहले इसका बीज निकाल लें, तभी पशुओ को खिलाएं। इस खुराक के प्रयोग से रोगी पशु स्वस्थ होने लगते हैं। ये है थनैला रोग अयोध्या : दुधारू पशुओं के थन में सूजन व कड़ा हो जाता है और दूध खराब आता है।

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